मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

संकष्ट चतुर्थी पौराणिक कथा

संकष्ट चतुर्थी पौराणिक कथा

इस कथा का उल्लेख श्रीस्कंद पुराण में आया है भगवान्‌ श्रीकृष्ण से जब अर्जुन ने अपना खोया हुआ राजपाट पुनः प्राप्त करने का उपाय पूछा, तो उन्होंने संकष्ट चतुर्थी बत्रत रखने की सलाह दी और कहा कि इस ब्रत की बड़ी आमित महिमा हे। इसके प्रभाव सें राजा नल ने अपना खोया राज्य प्राप्त कर लिया था। तुम्हें भी इस ब्रत के करने से अपना राज्य फिर से मिल जाएगा।
संकष्ट चतुर्थी पौराणिक कथा

सत्युग में नल नामक एक राजा था, जिसकी दमयन्ती नामक  सुन्दर पत्नी थी। जब राजा नल पर विकट समय आया तो उसके घर को आग ने जलाकर राख कर दिया। चोर उसके घोडे, हाथी, खजाने ओर  धन चुरा कर ले गए, बचा धन राजा जुए में हार गया, मंत्रीगण धोका दे गए। अंत में उसे अपनी पत्नी के साथ वन में भटकना पडा, जहां उसे भारी कष्ट सहने पडे। कलियुग के प्रकोप से उसे अपनी सती साध्वी पत्नी  से भी अलग होना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया कि उसे पेट की आग बुझाने के लिए अलग अलग जगह नोकरी भी करनी पडी। अनेक बीमारियों से ग्रस्त होकर वह अपने दिन गुजारने लगा।

एक दिन दमयंती शरभंग ऋषि की कुटिया  में पहुंच कर प्राणम करके अपना दुखड़ा सुनाने लगी'हे मुनि श्रेष्ठ! मैं समय के कुचक्र के कारण अपने पति और पुत्र से अलग हो गई हूं। मेरे पति का छिना हुआ राज्य, पति और पुत्र की प्राप्ति फिर से केसे हो, उसका उपाय बतलाने की कृपा करें।'

महामुनि शरभंग ने कहा-'हे दमयन्ती! में तुम्हें एक ऐसा व्रत बतलाता हूं, जिसके करने से समस्त संकट दूर होकर मनोकामनाएं पूर्ण होती हें। 'संकष्ट चतुर्थी" के नाम से जाना जाने वाले इस ब्रत को भाद्रपद मास की कृष्ण चतुर्थी को जो कोई भी विधि पूर्वक गणेशजी का पूजन करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस ब्रत के करने से तुम्हें निश्चित रूप से अपने इच्छित मनोरथ प्राप्त होंगे। रानी दमयंती ने भाद्रपद मास की कृष्ण चतुर्थी से इस ब्रत को आरंभ करके लगातार सात माह तक गणेश जी पूजन किया, तो उसे अपना पति, पुत्र और खोया हुआ राज्य  फिर से प्राप्त हो गया। तभी से इस ब्रत की परम्परा  चली आ रही है ।

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