Kabir ke Shabd
नर कित नेक खपगे, सिर बदनामी धर कै।।
मोह माया में अंधा होग्या, मरा कुटुम्ब में फँसके।
आई जवानी हुआ दीवाना, बोलै अकड़-२ कै।।
कफ वायु तेरे घट ने घेरें, साँस लिए मर मर कै।
अंत समय चारा ना चलता, लेजा यम पकड़ कै।।
कोरा करवा लिया हाथ मे लाए सैं जल भरकै।
चार जनां ने बैठा कर दिया, स्नान कराया रल मिल कै।
दो बाही बाँसा की लाए, लाए डाभ क़तर कै।
चार जने तनै लेके चाले, ऊपर खूब जकड़ कै।।
आला सीला ईंधन लाए, चिता चीना दइ धर कै।
गेर पतंगा फूंस में, फूंक दिया फिर फिर कै।।
फूंक फांक कै घर में आ गए, बैठे हैं रल मिल कै।
कह कबीर दो दिन की जिंदगी,दुनिया में रहिये डरके।।

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