शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

रोवै नीर भरण आली, जब धंसा घड़े में कूआ - कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ class 7

कबीर प्रकट दिवस

Kabir ke Shabd

रोवै नीर भरण आली, जब धंसा घड़े में कूआ।।
इतनी सै तूँ चातर नारी, एक हाथ मे ले रही डोरी।
नीर भरै तूँ चोरा चोरी, घड़ा छूटता ना जब घर चाली।।

क्यूँ हांडे सै फुला फुला, घरां बिठा कै न्हवा ले दूल्हा।
तलै कढाई यो ऊपर चुल्हा, हे फंसी लोटे में थाली।।

इतना सै तूँ ज्ञानी चातर, कम्बल छोड़ ओढ़ ली चादर।
जा बोया तनै सारा खादर, हे बिन बुलधा ओर हाली।।
कहत कबीर सुनो भई साधो, हे कोय ख्याल करो ख्याली।

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