नमस्कार क्यों करते हैं
सहज रूप से हथेलियां जोड़कर बैठने से भावनाएं शांत होती हैं, मन की चंचलता शांत होती है। चेतना का उदय होता है। नम्रता का विकास होता है। हृदय शांत हो जाता है। हल्केपन का अनुभव करते हैं। स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर की ओर अग्रसर होता जाता है। काया कोमल होती जाती है। अंहकार, दर्प, क्रोध, द्वेष आदि भाव नष्ट होते हें। इससे दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार मैत्रीपूर्ण हो जाता है। नमस्कार करने की हमारी पंरपरा काफी प्राचीन है।वैदिक काल से ही हाथ जोड़ने के वर्णन मिलते हैं। देवतागण भी परस्पर हाथ जोड़कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। हाथ जोड़कर स्वागत करना एक स्वाभाविक परंपरा है। सामान्य जन में श्रद्धा, सम्मान, सदभाव व्यक्त करने के लिए हाथ जोड़ना एक स्वाभाविक क्रिया है। यहां तक कि मृतक की अंतिम विदाई व उसकी आत्मा की शांति के लिए भी हाथ जोडे जाते हैं। पश्चाताप व क्षमा हेतु भी हाथ जोड़े जाते हैं।
गुरुजनों, बयोवृद्धों का आदर, सत्कार, सम्मान, अभिवादन, स्वागत भी हाथ जोडकर किया जाता है। किसी के आगमन के समय, विदाई के समय अथवा भोजन करने हेतु आग्रह करना हो तो भी हाथ जोडे जाते हैं। आभार व्यक्त करना हो और हाथ न जोडे जांए तो भला आभार कैसा ? ईश्वर की उपासना, पूजा, अर्चना, भक्ति, बिना हाथ जोड़े कभी हो ही नहीं सकती। हमारे यहां कहा भी गया है अतिथि देवो भव:!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें