मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

आखिर क्यों ईश्वर एक धर्म अनेक

आखिर क्यों ईश्वर एक धर्म अनेक

धर्म की हमारे जीवन में क्‍या महत्ता है? धर्म हमें एक अच्छा मनुष्य बनाता है। हम अच्छे जीवन के सभी मूल्यों का पालन करें इसके लिए यह आवश्यक है कि हम ईश्वर और धर्म में अटूट आस्था रखें। सभी धर्मों के रीति-रिवाज व पद्धतियां हमें यही सिखाती हैं कि हम जीवन में सच्चाई के मार्ग पर चलें, स्वयं भले रहें ओर दूसरों की भी भलाई करें। धर्म इंसान के लिए एक मार्गदर्शक होता है जो उसे सही और गलत में अंतर करना सिखाता ।


कई अर्थों में धर्म एक दूसरे से काफी भिन्‍न होते हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उनमें समानताएं नहीं होतीं। सबसे बड़ी समानता तो यही हे कि सभी धर्म हमें भक्ति ओर मानवता का मार्ग दिखाते हैं। सभी धर्मों की कुछ मान्यताएं होती हैं जो सदियों से चली आ रही हैं ओर जिनके विषय में ऐसा माना जाता है कि वे स्वयं ईश्वर की ओर से व्यक्ति के लिए कही गई हैं।

इसके अतिरिक्त सभी धर्म एक भगवान मानते हैं, अपितु अनेक धर्म होते हुए भी भगवान एक होता है। जब तक सृष्टि हे, जमीन पर आसमान पर चांद सितारे हैं, जीवन है तब तक 'क्यों' का अस्तित्व खत्म नहीं होगा। आपके जीवन में कभी न कभी कोई न कोई क्रिया कलाप चलता ही रहता है। जिसमें अनेकों कार्य ऐसे होते हें जिन्हें हम अपने पूर्वजों के सिखाए अनुसार करते हैं, किंतु क्‍यों करते हैं

भारत में हिंदू धर्म की मान्यताएं हैं। उन्हें ऋषि मुनियों और विद्वानों ने यूं ही नहीं बना दिया है। उन मान्यताओं के पीछे कोई वैज्ञानिक रहस्य छिपा है। पूजा पाठ, यज्ञ, हवन, देवी देवताओं का पूजन सिमरन आदि क्या केवल मान्यताओं के सार ही किया जाता है। सम्भवत: नहीं। इनके पीछे अवश्य ही कोई बढ़ा रहस्य है।

सभी धर्मों में संस्कारों व परम्पराओं का विशेष महत्व है। इसकी महता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कारों व रीति रिवाजों में ही उलझा रहता है।

जिस प्रकार सभी धर्मों में ईश्वर की कल्पना की गई है। उसी प्रकार संस्कारों का भी अपना महत्व है। अच्छे संस्कारों से ही मनुष्य महान बनता है। यह बात अलग है आपा धापी के जीवन ने हमारे संस्कारों को बेतरह प्रभावित किया है। प्रभावित ही नहीं अपितु अब लोगों में संस्कारों के प्रति दृष्टिकोण भी बदल रहा हे।

लेकिन संस्कारों के अभाव में किसी भी धर्म की कल्पना करना निरर्थक हे। व्यक्ति को ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते हुए स्वयं क्‍या है यह जानने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ साथ आवश्यक हे यह ध्यान देना कि वर्तमान जीवन का स्तर क्‍या है और हमारा सामाजिक स्तर हमारे बौद्धिक स्तर के समरूप हे अथवा नहीं, क्योंकि उत्थान और पतन इस पर निर्भर करता है। 

अंत में मुझे इतना ही लिखना है कि जब तक क्‍यों हे तब तक जिज्ञासा है, आशा है। जिज्ञासा समाप्त, आशा मिट गई तो जीवन का भी क्‍या मूल्य? जो मूल्यविहीन है वह मिट्टी है।

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