आखिर क्यों चौथ का चांद देखना वर्जित क्यों हे
है ना आश्चर्यजनक बात जब श्री गणेश ने कहा दूज का चांद देखना चाहिए पर चौथ का चंद्रमा ना बाबा ना। इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा मिलती एक बार श्रीगणेश ने कोमल चन्द्रमा पर कुपित होकर उसे शाप दिया था कि जो चांद को देखेगा, उस पर कष्टों के पहाड़ टुट पटेंगे किंतु चद्धमा द्वार बार बार क्षमा याचना करने तथा इन्द्र तथा अग्नि आदि देवताओं द्वाग चंद्रमा को क्षमा करने का निवेदन करने पर, गणेश ने अपने शाप का सीमित कर दिया था।तब श्रीगणेश ने चांद से कहा था कि भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष के चंद्र को जो कोई भी देखेगा, उसे दारूण दुख झेलने पड़ेंगे। कितु प्रत्येक माह की द्वितीया को चंद्रमा के दर्शन सबके लिए शुभ रहेंगे। किंतु श्री गणेण ने चंद्रमा को भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को न देखे जाने का जो शाप दिया था, उसकी मान्यता आज भी है। आज भी लोग चतुर्थी का चांद देखने से डरते हैं।
इस विषय में श्रीकृष्ण की एक कथा है। एक बार श्रीकृष्ण ने अनजाने में ही भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का नभ में दमकता समस्त कलाओं से पूर्ण चांद देख लिया। अत: उन्हें चोरी का कलंक लगा। कथा कुछ इस प्रकार है द्वापर में राजा सत्राजित के पास एक विलक्षण मणि थी स्यमन्तक मणि। जो उसने भगवान सूर्य से वरदान रूप प्राप्त की थी। वह मणि बड़ी ही चमत्कारी थी।
उसके रहते राजा सत्राजित को कभी भी धन धान्य की कमी न हो सकती थी। एक दिन सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को दिखाई। श्रीकृष्ण सत्राजित से बोले-'यह मणि वास्तव में अद्वितीय हे। यह मुझे दे दो।” सत्राजित बोला नहीं, नहीं। यह मणि नित्य ही मुझे ढेर सारा स्वर्ण प्रदान करती है। यह में तुम्हें कदापि नहीं दे सकता। फिर एक दिन सत्राजित के प्रिय भाई प्रसन्नजित ने उस मणि को पहनकर देखना चाहा, उसने सत्राजित से वह मणि मांगी। सत्राजित ने मणि प्रसन्नजित को दे दी।
प्रसन्नजित ने मणि अपने गले में पहन ली। फिर वह अपने मित्रों के सहित शिकार खेलने के लिए निकला। शिकार खेलते हुए प्रसन्नजित अपने संगी-साथियों से बहुत आगे निकल गया। वहां उसे एक सिंह दिखाई पडा। इससे पहले कि प्रसन्नजित सिंह का शिकार करता, सिंह ने ही उस पर आक्रमण कर दिया ओर उसे मारकर दिव्य चमक वाली मणि ले गया।
संयोगवश मणि अपने गले में पहनकर जा रहे सिंहराज पर त्रेतायुग के महान योद्धा जामवंत की दृष्टि पडी। सिंह के मुख पर रक्त लगा था। उस दिव्य चमक वाली मणि को सिंह के गले में तथा उसके मुंह को रक्तरंजित देख, जामवंत समझ गए कि अवश्य ही इस सिंह ने यह मणि किसी को मारकर उससे छीनी है।
जामवंत ने उस सिंह को मारकर वह मणि अपने अधिकार में ले ली ओर घने जंगल में स्थित अपनी गुफा में लोट गए तथा उन्होंने वह दुर्लभ मणि अपनी पुत्री जामवंती को सौंप दी। जामवंती ने उसे अपने गले में पहन लिया। राजा सत्राजित को जब मणि नहीं पाई तो उसने चोरी का दोष श्रीकृष्ण पर लगा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रण कर वह मणि लाकर राजा सत्राजित को दी। तब से चौथ का चन्द्रमा देखना वर्जित हो गया।
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