आजा रे खिलाड़ी तनै खेल रे खिलाऊँ,
Kabir Ke Shabd
छोड़ दे कपट एक सीख समझाऊं।तिरने की तदबीर।
मन मार सूरत ने डाँटो रे, निर्भय बनो फकीर।।
माला जपै तो ऐसे जपनी, जैसे चढ़े बांस पे नटनी।
मुश्किल है ये काया डटनी,
डटे तो परले तीर।।
जल भरने को चली पनिहारी,सिर पे घड़ा, घड़े पे झारी,
हाथ छोड़ बतलावें सारी,
छलकन दें न नीर।।
गैया चरन गई थी वह में, बछड़ा छोड़ गई भवन में।
सुरत बसै बछड़े के मन में,
ऐसे साध शरीर।।
कमोदनी का जल में बासा, चंद्रमा से लग रही आशा।
सुन ले रे तुम धर्मिदासा, कह गए दास कबीर।।

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