मनवा तूँ किसका सरदार रे
Kabir Ke Shabd
मनवा तूँ किसका सरदार रे, तेरी रैय्यत है खोटी।।
तेरे नगर में पाँच जुलाहे, जो नित करते व्यापार।
रात दिनां मुड़ते नहीं हारे, बिना काम का सार रे।।
तेरे नगर में पाँच कमीनी, करें नई नई कार।
पांचों किसी का कहा न मन मानें, बहुत घनी बदकार।।
जब पांचों को पता नहीं था, या नगरी थी गुलजार।
कब पांचों को खबर पड़ी, तेरी नगरी दई उजाड़।।
इस नगरी को फेर बसाओ, कर पांचों संग रार।
कह रविदास सुनो भई साधो, लूटो अजब बहार।।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें