हो ले सुरतां त्यार
Kabir Ke Shabd
हो ले सुरतां त्यार, इब तूँ क्यूँ ला रही सै वार।
चालिए सत्संग में।।
सत्संग के में आना होगा, मतना ज्यादा देर करै।
तूँ कर रही इनकार, पड़ेगी कालबली की मार।।
तूँ समझन जोगी सयानी सै, तनै कोन्या बात पीछानी सै
या समय आवनी जानी सै, सँसार ओस का पानी।।
सखी सहेली कट्ठी होकै, तनै बुलावण आई हे।
कोय भीतर कोय बाहर, लाग रही दरवाजे पे लार।।
छः सो मस्ताना तनै पढा दे, सुमरण का कोर्स करवादे।
ना इकसर ना इकसार, नोकरी सन्तों के इकतार।।

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