रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा,
Kabir Ke Shabd
रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा, काया कुटी खाली करना पड़ेगा।
चमड़े के कमरे को तूँ क्या सम्भाले, जिस दिन तुझे घर का मालिक निकाले।
इसका किराया भी भरना पडेगा।।
आएगा नोटिस जमानत न होगी,पल्ले में गर कुछ अमानत न होगी।
फिर होके कैद तुझे चलना पड़ेगा।।
मेरी न मानो यमराज तो मनाएंगे, तेरा कर्म दंड मार मार भुगताऐंगे।
घोर नरक बीच दुःख सहना पडेगा।।

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