शनिवार, 2 जुलाई 2016

कबीर थारी काया रहे अलमस्त नाम की || Thari Kaya Rahe Almast Naam Ki Kabir Ke Shabd ||

थारी काया रह अलमस्त
Kabir Ke Shabd

थारी काया रह अलमस्त, नाम की पीले न बूटी।।
तन कर कुंडी मन का सोंटा, सत्त की रगड़ बूटी।
कसमों के रुमाल में छान दिये, तेरे तन को लगे घुंटी।।

तूँ हाथ पसारे जागा बावले, आया बांध मुट्ठी।
सत्तनाम निशदिन भज बन्दे,कर दे डोर छोटी।।

एक तो बेड़ा पड़ा भँवर में, दूजी नाव टूटी।
आँख खोल के देख मुसाफिर, जिंदगानी छोटी।।

भाई शॉल दुशाले काम न आवै,धरे रहैं खूंटी।
काल अचानक आ मारेगा, लंका सी टूटी।।

ध्रुव ने पी प्रह्लाद ने पी, सत्तनाम बूटी।
साहिब कबीरा ने ऐसी पीई , कर जो छोटी।।

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