Kabir ke Shabdशब्द तेरी सार, कोय कोय जानै।।दीवे पे पतंगा जला लिया अंगा,या जलने की सार कोए ।।फूल ऊपर भँवरा कली रस ले रहा,या फूलों की महकार कोय कोय।।चाँद चकोरा, वो बोलै दादर मोरा,शब्द झनकार कोय।।कह कबीरा मन धरता क्यूँ ना धीरा,यो गुरु का उपकार।।
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