Kabir ke Shabdसन्तों घर में झगड़ा भारी।।रात दिवस मिल उठ उठ लागैं, पाँच चोर एक नारी।।न्यारो न्यारो भोजन चाहवै, पांचों अधिक स्वादी।कोय काहू की बात न मानै, आपै आप मुरादी।।दुर्मत के दिन गिण भेटें, चोर ही चाप चबेरे।कह कबीर सोई जन मेरा, जो घर की रार निबेरे।।
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