मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

वैशाख मास की गणेश जी की कथा

वैशाख मास की गणेशजी की कथा

पुराने समय में रतिदेव नाम के एक राजा हुआ करते थे। उनके राज्य में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम धर्मकेतु था। धर्मकेतु की दो पत्नियां थीं। एक सुशीला तो दूसरी का नाम चंचलता था। दोनों पत्नियों के विचार ओर व्यवहार बहुत ही अलग थे। सुशीला धार्मिक प्रवृत्ति की थी ओर ब्रत-उपवास, पूजा-अर्चना आदि में अधिक विश्वास रखती थी। इसके उलट ही चंचलता भोग--विलास में प्रत्याधिक मस्त रहती थी। वह शरीर के साज-श्रृगार पर ही अधिक ध्यान देती रहती थी। किसी ब्रत-उपवास या पूजा-अर्चना से उसका कुछ भी लेना-देना नहीं था।

vaishakh mah ki ganesh ji ki katha

कुछ ही दिनों के बाद धर्मकेतु की दोनों पत्नियों को सन्तान  की प्राप्ति हुई। सुशीला के पुत्री हुई और चंचलता के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। चंचलता सुशीला से यही कहती रहती थी कि सुशीला! तूने इतने ब्रतउपवास करके अपने शरीर को सुखा लिया, फिर भी तेरे लड़की हुई। मैंने कोई ब्रत-उपवास और पूजा-अर्चना भी नहीं की, फिर भी मैंने पुत्र को जन्म दिया है।

कुछ दिनों तो सुशीला सुनती रही। परन्तु जब उससे सुना नहीं गया तब उसने गणेशजी की आराधना की। गणेशजी प्रसन्‍न हुए तो उनकी कृपा से सुशीला कौ पुत्री के मुंह से बहुमूल्य मोती-मूँगे निकलने लगे। उसने एक रूपवान पुत्र को जन्म दिया। सुशीला का ऐसा सोभाग्य देख कर चंचलता के मन में जलन होने लगी। उसने सुशीला की बेटी को कुएं में गिरा दिया। पर सुशीला पर तो गणेशजी की कृपा थी। उसकी बेटी का बाल भी बाँका नहीं हुआ और वह सकुशल कुंए से निकाल ली गई।

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