बुधवार, 8 दिसंबर 2021

कबीर भजन गुरु बिन मुक्ति न होएगी - Kabir Bhajan Guru Bin Mukit na Hoyegi

Kabir Bhajan Guru bin Mukti Na Hoyegi

कबीर भजन 
गुरु बिन मुक्ति न होएगी

गुरु बिन मुक्ति ना होएगी रे,मन चंचल भाई।
गहरे से जल की मछली रे,नदियां बह आई
लाख बार वा को फहो लियो रे,वा की गंध ना जाइ।
नदी किनारे बूगला खड़ा रे,खड़ा ध्यान लगाई
आती तो देखी मछली रे,झट चोंच चलाई।
दिखत का बूगला उजला,रे मन मैला भाई।
आँख मींच मोहनी बना रे,झट मछली खाई।
अगम अगोचर एक वस्तु है रे गुरुआ से पाई
कह कबीर धर्मी दास से रे, हंसा चेत मेरे भाई।

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