शुक्रवार, 17 जून 2016

अध्ययन-Practice.

अध्ययन 

सत्त्त अधययन करते -२ मानुष जीवन में समाधी अवस्था को प्राप्त सकता है 
स्वाध्याय  सामान तप न अत्तित में हुआ , न वर्तमान में है   और न भविष्य  में होगा । 
अधययन के प्रति प्रेम जीवन में आने वाले विषाद और कलानी के शनो को आनंद और प्रशन्नता शनो में परवर्तित करने की षमता प्रदान करता है । 
धूर्त लोग अधययन का तिरस्कार करते है , सामान्य जन उस की प्रशंसा करते है और ज्ञानी जन उस का उपयोग करते है ।                                                                                                                                    {बकेन }
अरे अज्ञानी मानव । अमर आत्मा का निषेद करने वाले ग्रंथो का आधार ले  कर तुम पथ भरष्ठ हो गए हो । अब  इस मोह निंद्रा से जाग जाओ । अपने नेत्र खोलो । तुम ने तो अपने लिए नरक  स्थान निश्चित कर  लिया है । और उस अन्धतम प्रदेश में जाने  के लिए सीधा पार पत्र प्राप्त  कर लिया है । स्वर्ग द्वार बंद करने वाले निकर्स्ट ग्रंथो को पढ़ने से ऐसा हुआ है । इन्हे अग़्नि की भेंट  चढ़ा दो । तथा गीता एवं उपनिषद को पढ़ो । नियमत जप कीर्तन तथा धयान करो । और इस भांति अपने बुरे संस्कारो को अमूल नष्ट कर डालो । तभी तुम विनाश से सुरक्षित रह सकोगे । {शिवानद सरस्वती }
पढ़ना सब जानते है , पर क्या पढ़ना चाहिए ?  ये कोई नहीं जानता । 
दूसरी चीजे बल से छीनी जा सकती है या धन से खरीदी जा सकती है किन्तु ज्ञान केवल अधययन से प्राप्त होता है और अधययन केवल में किया जा सकता है । संगोपांगों वेद पढ़ कर भी जो वेदों के द्वारा जानने योग्य परमात्मा को  नहीं जानता , वह मूढ़ केवल वेदों का बोझ ढोने वाला है। 


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