और बात थारे काम ना आवै
Kabir Ke Shabd
और बात थारे काम ना आवै, रमतां सेती लाग रे।
क्या सोवै गफलत के अंदर, जाग-२ उठ जाग रे।।
तन सराय में जीव मुसाफिर, करता फिरै दिमाग रे।
रैन बसेरा करले न डेरा, उठ सवेरा त्याग रे।।
उमदा चौला रत्न अमोला, लगै दाग पे दाग रे।
दो दिन की गुजरान जगत में, क्यूँ जले बिरानी आग रे।।
कुब्द्ध कांचली चढ़ी है चित्त पे, हुआ मनुष्य से नाग रे।
सूझत नाही सजन सुख सागर, बिना प्रेम वैराग्य रे।।
हरि सुमरै सोई हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे।
भरमत भँवरा विष के वन में, चल बेगमपुर बाग रे।।
शब्द सैन सद्गुरु की पिछाणी, पाया अटल सुहाग रे।
नित्यानन्द महबूब गुमानी, प्रगटे पूर्ण भाग रे।।

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