नारायण -२ बोल तोते
Kabir Ke Shabd
नारायण -२ बोल तोते, नारायण-२बोल।
तूँ तो है पखेरू बेटा, जंगलों का वासी प्यारे।
जंगलों में वास करे, लेता है आनन्द सारे।
खाने को खाता है, गिरी मनखा दाख छुहारे।
इधर इधर को रह डोलता, करता फिरे किलोल।।
फ़ंदवान ने आन करके, डाल दिया जाल भाई।
पकड़ के गर्दन से तुझको, दिया पिंजरे में डाल भाई।
खाने को देता है, दूध और दाल भाई।
सुबह शाम तेरी परेड कराता, शुद्ध शब्द मुख बोल।
चेले ही नै समझी नाही, तोते ही ने समझी सैन।
तोते ही के बंधन खुलगे, सुनकर सद्गुरु जी के बैन।
जब ये हालत देखी सेठ ने, पिंजरा ठाया अपनी गैल।
उलट पलट के देखन लाग्या, दीन्ही खिड़की खोल।।
सद्गुरु बन्दी छोड़ ने, आकर के छुड़ाए बन्द।
पिंजरे से निकल तोता, मन मे बहुत हुआ आनन्द।
सन्तों में बैठ के, मथुरा नाथ गावै छंद।
सब सन्तों को करे बन्दगी, दीन्ही तराजू तोल।।

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