Kabir ke Shabd
अपने हाथां फांसी घालै, क्यों अक्ल पे पर्दे डाल लिए।
हुआ फिरै कंगाल बावले, तूँ खोल गांठ का लाल लिए।।
बाजीगर ने जाल फैंक दिया, समझ तेरी में आया ना।
अंधकूप में पड़ा रहा तनै, सोचा कोय उपाया ना।
इबकै चूकै ठोड़ नहीं, इस बात का कर तूँ ख्याल लिए।।
राजा बनके रैय्यत होग्या, उल्टी कहानी हो रही रे।
पचीस फैंके माल बाहर नै, पाँच करैं घर चोरी रे।
तूँ जोड़ गुरु संग जोड़ी रे, तूँ बचा अपना माल लिए।
एक ईंट में मंजिल ठाना, बाकी की धर्मशाला रे।
ऊपर नींव मुंडेरे नीचै, चिन गया चिननेहारा रे।
तूँ लेके गुरु का नाम मशाला, चिन कोठी बंगले हॉल लिए।।
साहब कंवर मिले धाम दिनोद में, हाजिर हाल हजूर रे।
भज सतबीर तूँ गर्भ गुमानी, चरणां लगो मजूर रे।
उड़ै बाजैं अनहद ढोल, सुन पाँच कोस तूँ चाल लिए।।

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