में जितेंद्रीय हूं।
PRIDE
PRIDE
में जितेंद्रीय हूं। ऐसा अभिमान मत करो।मन में विषय सूक्ष्म रूप से बैठे है।मौका मिलते ही वे प्रकट होने लगेंगे।
अपने गुणों का अभिमान होने से दूसरो में दोष दीखते है।
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| Pride |
और दूसरों में दोष दिखने से अपना अभिमान पुष्ट होता है।
वस्तुतः रुपयो की संख्या के आधार पर अपने को बड़ा या छोटा मानना पतन का चिन्ह है।
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