सापदा का डोरा
वैशाख का महीना लगते ही साँपदा को डोरा खोल होली के दूसरे दिन डोरा बाँधते हें। सब कोई अच्छा दिन देखकर वेशाख में डोरा खोलते हैं। साँपदा का डोरा खोलकर उस दिन ब्रत करें ओर साँपदा माता की कहानी सुनें। जिस दिन डोरा लें उस दिन भी कहानी सुननी चाहिए. ओर जिस दिन खोलें उस दिन भी कहानी सुननी चाहिए। भोजन दिन में एक बार ही खाना चाहिए।चैत्र मास में जहां त्योहारों की भरमार है, वहीं वैशाख मास त्यौहारों से लगभग शून्य है। परन्तु बहुत इस मास का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। वैशाख मास में कई धार्मिक उत्सव और व्रत तो पड़ते ही हैं साथ ही अनेक महिलाएं पूरे मास के ब्रत भी करती हैं। इस मास के स्नान, दान और ब्रत का विशिष्ट महत्व है तो तीर्थ का प्राचीन धार्मिक विधान।
साँपदा के उद्यापन की विधि
आठ वर्षों तक साँपदा का ब्रत करने बाद यदि मन की बात पूरी हो जाये तो उद्यापन कर देना चाहिए। उद्यापन के दिन गोटे का ओढ़ना ओढ़ , नाक में नथ पहनकर मेंहदी लगाकर सोलह जगह चार-चार पृडी और थोड़ा-थोड़ा-सा हलवा रखें। एक ब्लाऊज रखें और रुपया रखकर हाथ फेर दें। रोली, चावल, छिड॒ककर टीका लगायें। पीछे सास के पैर छकर उसको दें। सोलह ब्राह्मणियों को जिमाकर हाथ फेरी हुई पूरी, हलवा दे दें ओर टीका लगाकर दक्षिणा दें। उद्यापन के बाद कहानी सुनकर डोरा ले लें। चैत्र सुदी पूर्णिमा से वैशाख का स्नान आरम्भ किया जाता है।
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