रै संकट में साधो हिरनी हर राम पुकारी।
एक दिन हिरनी गई,बिछुड़ डार तै, हुआ निमष भर भारी।
भाज दौड़ जंगल में चढ़ गई, गैल हुई कुतिहारी।।
एक और ने जाल बिछा दिया, एक और फन्द कारी।
एक और न अग्न जला दइ, एक और कुतिहारी।।
परवा पछवा पवन चला दइ, पाड़ बगा दई जाली।
घटा उठ के बरसन लागी, अग्न बुझा दइ सारी।।
बोझे माँ ते सुसा लिकड़ा, गैल होइ कुतिहारी।
बाम्बी माँ ते सांप निकल गया, पापी डसा शिकारी।।
नाचे हिरनी कूदे हिरनी, मन में ख़ुशी मनारहि।
कह कबीर सुनो भई साधो, भव सागर ते तारी।।

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