कबीर भजन
नाम बिन भाव कर्म नहीं छूटे।
नाम बिन भाव कर्म नहीं छूटे।
साधु संग और राम भजन बिन,काल निरन्तर लुटे।।
मल सेती जो मल को धोवे,सो मल कैसे छूटे।
प्रेम का साबुन नाम का पानी,दो मिल ताँता टूटे।।
भेद अभेद भ्र्म का भांडा, चौड़े पड़-२ फूटे।
गुरुमुख शब्द गहे उर अंदर,सकल भर्म से छूटे।।
राम का ध्यान तूँ धर रे प्राणी,अमृत का मेंह बूटे।
जब दरयाव अर्प दे आपा, जरा मरण तब छूटे।।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें