कहानी– श्रावस्ती में अकाल
एक बार श्रावस्ती में भयंकर अकाल पड़ा। कई लोग भूख से तड़पकर मर गए। सबसे चिंताजनक स्थिति उन माताओं की थी, जिनकी गोद में दुधमुंह बच्चे थे और उनके घर के पुरुष काल के गाल में समा चुके थे।
बुद्ध को जब यह पता चला तो वे चिंतत हो गए।उन्होंने तत्काल धनवान लोगों की एक सभा बुलवाई और उनसे कहा, ‘आप इन माताओं और इनके बच्चों की रक्षा करें।’ वहां उपस्थित लोग बोले, ‘हमारे पास अनाज तो है, पर वह एक वर्ष ही चल पाएगा। इसमें से हमने दूसरों को अन्न दिया तो हमारा परिवार भूखों मर जाएगा।
दूसरे घर का दीया जलाना भी तभी अच्छा लगता है जब अपने घर का दीया जल रहा हो।’इस पर बुद्ध गंभीर होकर बोले, ‘आप लोग अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पा रहे। क्या आपको विश्वास है कि आपके सदस्य की मृत्यु केवल अन्न न मिलने के कारण ही हो सकती है? क्या वे कोई अन्य रोग या दुर्घटना से बचे रहेंगे?
क्या आप इस बात के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं कि एक साल में इन पीड़ित व्यक्तियों के अलावा कोई और काल का ग्रास नहीं बनेगा? आपको भविष्य के बारे में सब कुछ कैसे पता?’यह सुनकर सभी ने अपने सिर नीचे कर लिए।
इसके बाद बुद्ध बोले, ‘भाइयो, आपदाओं से मिलकर ही निपटा जाता है। यदि आज आप इनकी मिलकर सहायता करेंगे, तो अकाल जैसी इस विपत्ति से मुक्ति संभव है। किंतु यदि आप इनकी मदद नहीं करेंगे तो जीवन भर कोई आपकी सहायता करने को भी तैयार नहीं होगा। याद रखिए, विपत्ति में पड़े लोगों की सहायता करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
यह सुनकर श्रावस्ती के सभी सेठों और व्यापारियों ने अपने अनाज के भंडार खोल दिए। वे स्वयं भूखे लोगों में अन्न बांटने लगे। कुछ ही समय बाद सब लोगों के प्रयास से अकाल जैसी विपत्ति पर विजय पा ली गई और सब सुखपूर्वक रहने लगे।
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