अमर सूक्तियां
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#1 |
अच्छा अंतःकरण
सर्वोत्तम ईश्वर है। |
टामस फुलर |
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#2 |
अंतर्ज्ञान दर्शन की एक मात्र कसौटी
है। |
शिवानंद |
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#3 |
मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। |
बृहदारण्यक उपनिषद् |
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#4 |
अग्नि स्वर्ण को परखती है, संकट वीर पुरुषों
को। |
अज्ञात |
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#5 |
अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के
दो सर्वोत्तम वरदान हैं। |
प्यूब्लियस साइरस |
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#6 |
अज्ञान से बढ़कर कोई अंधकार नहीं है। |
शेक्सपियर |
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#7 |
अज्ञानी का संग नहीं करना चाहिए। |
आचारांग |
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#8 |
अति से अमृत भी विष बन जाता है। |
लोकोक्ति |
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#9 |
सभी वस्तुओं की अति दोष उत्पन्न करती
है। |
भवभूति |
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#10 |
अधिक खाने से मनुष्य श्मशान जाता है। |
लोकोक्ति |
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#11 |
अतिथि का अतिथ्य करना श्रेष्ठ धर्म है। |
अश्वघोष |
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#12 |
अतिथि सबके आदर का पात्र होता है। |
अज्ञात |
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#13 |
दरिद्रों में दरिद्र वो है जो अतिथि का
सत्कार न करे। |
तिरुवल्लुवर |
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#14 |
अत्याचार सदा ही दुर्बलता है। |
जेम्स रसेल लावेल |
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#15 |
अधिक का अधिक फल होता है। |
अज्ञात |
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#16 |
अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं
होता। |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
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#17 |
अधिकार केवल एक है और वह है सेवा का
अधिकार, कर्तव्य पालन का अधिकार। |
संपूर्णानंद |
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#18 |
अध्ययन उल्लास का और योग्यता का कारण
बनता है। |
बेकन |
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#19 |
अध्ययन आनंद, अलंकार तथा योग्यता
के लिए उपयोगी है। |
बेकन |
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#20 |
अनंत जीवन का एकमात्र पाथेय है धर्म। |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
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#21 |
अनुभव को खरीदने की तुलना में उसे
दूसरों से माँग लेना अधिक अच्छा है। |
चार्ल्स कैलब काल्टन |
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#22 |
बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा
है। |
स्वामी विवेकानंद |
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#23 |
अनुशासन परिष्कार की अग्नि है, जिससे प्रतिभा
योग्यता बन जाती है। |
अज्ञात |
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#24 |
अभय ही ब्रह्म है। |
बृहदारण्यक उपनिषद् |
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#25 |
अभावों में अभाव है-बुद्धि का अभाव।
दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। |
तिरुवल्लुवर |
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#26 |
अभिमान को जीत से नम्रता जाग्रत् होती
है। |
महावीर स्वामी |
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#27 |
शुभार्थियों को अभिमान नहीं होता। |
कल्हण |
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#28 |
अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। |
सूत्रकृतांग |
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#29 |
बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करनेवाला
अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। |
सोमदेव |
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#30 |
कोई ऐसी वस्तु नहीं, है जो अभ्यास करने
पर भी दुष्कर हो। |
बोधिचर्यावतार |
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#31 |
सच्चा अर्थशास्त्र तो न्याय बुद्धि पर
आधारित अर्थशास्त्र है। |
महात्मा गाँधी |
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#32 |
अवगुण नाव की पेंदी के छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या
बड़ा, एक दिन उसे डुबो देगा। |
कालिदास |
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#33 |
पराय धन का अपरहण, परस्त्री के साथ
संसर्ग, सुहृदों पर अति शंका- ये तीन दोष विनाशकारी हैं। |
वाल्मीकि |
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#34 |
जो अवसर को समय पर पकड़ ले, वही सफल होता है। |
गेटे |
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#35 |
अवसर उनकी मदद कभी नहीं करता जो अपनी
मदद स्वयं नहीं करते। |
कहावत |
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#36 |
‘असंभव’ एक शब्द है, जो मूर्खो के
शब्दकोश में पाया जाता है। |
नेपोलियन |
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#37 |
असमय किया हुआ कार्य न किया हुआ जैसा
ही है। |
अज्ञात |
|
#38 |
अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं
किया जा सकता। |
स्वामी विवेकानंद |
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#39 |
तलवार मारे एक बार, अहसान मारे बार-बार। |
लोकोक्ति |
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#40 |
अहिंसा परम श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशु-बल से वह अनंत
गुना महान् और उच्च है। |
महात्मा गाँधी |
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#41 |
अकेली आँख ही बता सकती है कि हृदय में
प्रेम है अथवा घृणा। |
तिरुवल्लुवर |
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#42 |
जो औरों के लिए रोते है, उनके आँसू भी हीरों
की चमक को हरा देते हैं। |
रांगेय राघव |
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#43 |
स्वयं पर आग्रह करो, अनुकरण मत करो। |
एमर्सन |
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#44 |
छोटी नदियाँ शोर करती हैं और बड़ी
नदियाँ शांत चुपचाप बहती हैं। |
सुत्तनिपात |
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#45 |
आचरण दर्पण के समान है, जिसमें हर मनुष्य
अपना प्रतिबिंब दिखाता है। |
गेटे |
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#46 |
आत्मविश्वास सफलता का प्रथम रहस्य है। |
एमर्सन |
|
#47 |
आत्मसम्मान रखना सफलता की सीढ़ी पर पग
रखना है। |
अज्ञात |
|
#48 |
यह आत्मा ब्रह्म है। |
बृहदारण्यकोपनिषद् |
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#49 |
मनुष्य की आत्मा उसके भाग्य से अधिक
बड़ी होती है। |
अरविंद |
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#50 |
आत्मिक शक्ति ही वास्तविकता शक्ति है। |
शिवानंद |
|
#51 |
आदर्श कभी नहीं मरते। |
भागिनी निवेदिता |
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#52 |
आनंद का मूल है-संतोष। |
मनुस्मृति |
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#53 |
आनंद वह खुशी है जिसके भोगनें पर
पछतावा नहीं होता। |
सुकरात |
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#54 |
पढ़कर आनंद के अतिरेक से आँखें यदि
नीली न हो जाएँ तो वह कहानी कैसी ? |
शरत्चंद्र |
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#55 |
आपदा एक ऐसी वस्तु है जो हमें अपने
जीवन की गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। |
विवेकानंद |
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#56 |
नारी का आभूषण शील और लज्जा है। बाह्य
आभूषण उसकी शोभा नहीं बढा सकते हैं। |
बृहत्कल्पभाष्य |
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#57 |
विद्वित्ता, चतुराई और
बुद्धिमानी की बात यही है कि मनुष्य अपनी आय से कम व्यय करे। |
अज्ञात |
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#58 |
आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है।
|
धम्मपद |
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#59 |
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का
प्रधान कारण आरोग्य है। |
चरक संहिता |
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#60 |
आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला
घोर शत्रु है। |
भर्तृहरि |
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#61 |
आलस्य दरिद्रता का मूल है। |
यजुर्वेद |
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#62 |
आवश्यकता अविष्कार की जननी है। |
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#63 |
आवश्यकता से अधिक बोलना व्यर्थ है। |
तुकाराम |
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#64 |
असीम आवश्यकता नहीं, तृष्णा होती है। |
जैनेंद्र |
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#65 |
आविष्कार से आविष्कार का जन्म होता है। |
एमर्सन |
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#66 |
आशा और आत्मविश्वास ही वे वस्तुएँ हैं
जो हमारी शक्तियों को जाग्रत करती हैं। |
स्वेट मार्डेन |
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#67 |
प्रयत्नशील मनुष्य के लिए सदा आशा है। |
गेटे |
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#68 |
आसक्ति विषयों के प्रति
आसक्ति मोह उतपन्न करती है। |
भारवि |
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#69 |
सप्ताह का विचार |
(पुरालेख) |
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#70 |
सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित
रहता है |
श्री अरविंद |
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#71 |
सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की
होती है। |
सरदार पटेल |
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#72 |
कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो
मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। |
सावरकर |
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#73 |
तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे
सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। |
वाल्मीकि |
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#74 |
संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता
निर्बलता और चाटुकारिता |
काका कालेलकर |
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#75 |
जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से
हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। |
सत्यार्थप्रकाश |
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#76 |
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर
कर देता है |
कहावत |
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#77 |
सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज
ही महान फल देता है। |
कथा सरित्सागर |
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#78 |
चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी
चाहिए। |
समर्थ रामदास |
|
#79 |
यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से
रचनात्मक |
इंदिरा गांधी |
|
#80 |
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और
प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। |
चाणक्य |
|
#81 |
द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा
सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। |
विनोबा |
|
#82 |
साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना
नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
|
#83 |
लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी
किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। |
जयप्रकाश नारायण |
|
#84 |
बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं।
उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। |
यशपाल |
|
#85 |
सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र
के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। |
डॉ. शंकर दयाल शर्मा |
|
#86 |
जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल
सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। |
नारदभक्ति |
|
#87 |
धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप
करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। |
महाभारत |
|
#88 |
दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए
लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। |
रामायण |
|
#89 |
शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति
की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। |
स्वामी ज्ञानानंद |
|
#90 |
धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना
है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। |
डॉ. शंकरदयाल शर्मा |
|
#91 |
त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न
मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न
क्रीडास्थल हैं। |
बरुआ |
|
#92 |
दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम
प्यारे नहीं होते। |
प्रेमचंद |
|
#93 |
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही
अधिक दुख और पतन की बारी आती है। |
जयशंकर प्रसाद |
|
#94 |
अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर
माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं |
महर्षि अरविंद |
|
#95 |
जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों
या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। |
स्वामी रामतीर्थ |
|
#96 |
जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और
आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है |
संपूर्णानंद |
|
#97 |
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण
होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। |
संत तिरुवल्लुर |
|
#98 |
वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को
उपदेश देता है। |
स्वामी रामतीर्थ |
|
#99 |
अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत
कठिन हो जाता है |
महादेवी वर्मा |
|
#100 |
करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर
से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। |
सुदर्शन |
|
#101 |
हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही
परम सुख है। |
वाल्मीकि |
|
#102 |
मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम
को खंडित करना है। |
राम प्रताप त्रिपाठी |
|
#103 |
नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना
नि:संदेह बुरा है, |
संत तिरुवल्लुवर |
|
#104 |
जय उसी की होती है जो अपने को संकट में
डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। |
जवाहरलाल नेहरू |
|
#105 |
कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने
स्वर में और चित्रकार |
डॉ. रामकुमार वर्मा |
|
#106 |
जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान
ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। |
इंदिरा गांधी |
|
#107 |
तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य
अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। |
गुरु गोविंद सिंह |
|
#108 |
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से
लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। |
गौतम बुद्ध |
|
#109 |
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार
है! |
लोकमान्य तिलक |
|
#110 |
सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन
और एकांत साधना में होता है। |
अनंत गोपाल शेवडे |
|
#111 |
कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार
अच्छी नीति नहीं। |
श्री हर्ष |
|
#112 |
अनुभव, ज्ञान उन्मेष और
वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। |
हरिऔध |
|
#113 |
जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही
सबसे बड़ा विजयी हैं। |
गौतम बुद्ध |
|
#114 |
अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और
अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। |
अज्ञात |
|
#115 |
जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने
मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। |
रवींद्र |
|
#116 |
जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी
नहीं रह सकता। |
माघ्र |
|
#117 |
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है
जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#118 |
प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि
ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#119 |
कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक
उठता है। |
अज्ञात |
|
#120 |
हताश न होना सफलता का मूल है और यही
परम सुख है। |
वाल्मीकि |
|
#121 |
अनुराग, यौवन, रूप या धन से
उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न
होता है। |
प्रेमचंद |
|
#122 |
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया
जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। |
वेदव्यास |
|
#123 |
फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल
झुक जाते हैं, |
तुलसीदास |
|
#124 |
प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन
हर दर्द की दवा हैं। |
अज्ञात |
|
#125 |
कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने
वाले श्रेष्ठ गुण हैं। |
लोकमान्य तिलक |
|
#126 |
कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर
खो जाने के लिए है। |
रामधारी सिंह दिनकर |
|
#127 |
विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक
और बुढ़ापे में संचित धन है। |
हितोपदेश |
|
#128 |
ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर
है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। |
शरतचंद्र |
|
#129 |
पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी
नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। |
गौतम बुद्ध |
|
#130 |
कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह
उसका दास भी है और स्वामी भी। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#131 |
रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने
वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। |
मुक्ता |
|
#132 |
जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन
सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। |
डॉ. विक्रम साराभाई |
|
#133 |
मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो
उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। |
विनोबा |
|
#134 |
लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय
ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। |
मुक्ता |
|
#135 |
बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण
हैं। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी हानि सह ले लेकिन विवाद न करें। |
हितोपदेश |
|
#136 |
मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है
पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। |
अज्ञात |
|
#137 |
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और
उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। |
भर्तृहरि |
|
#138 |
क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर
देती है। |
अज्ञात |
|
#139 |
चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में
फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। |
रवींद्र |
|
#140 |
आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन
पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। |
पं. रामप्रताप त्रिपाठी |
|
#141 |
मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप
नहीं रहता, |
चाणक्य |
|
#142 |
जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का
कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल
और आकाश का संगीत सबकुछ है। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#143 |
कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर
मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। |
रामधारी सिंह दिनकर |
|
#144 |
चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन
विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। |
सत्यसाई बाबा |
|
#145 |
भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य
सोया रहता है पर हिम्मत बाँध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। |
अज्ञात |
|
#146 |
ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों
के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। |
सादी |
|
#147 |
जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का
प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब
नहीं पड़ सकता। |
रामकृष्ण परमहंस |
|
#148 |
मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा
करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। |
अज्ञात |
|
#149 |
जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता
है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। |
महात्मा गांधी |
|
#150 |
साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और
बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। |
कबीर |
|
#151 |
देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य
में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। |
बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक' |
|
#152 |
सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा
राष्ट्रीय अपराध है। |
स्वामी विवेकानंद |
|
#153 |
दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और
लालची सभी वस्तुएँ चाहता है। |
अज्ञात |
|
#154 |
भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु
होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं। |
विवेकानंद |
|
#155 |
निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा
सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। |
रश्मिमाला |
|
#156 |
विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय
वस्तुओं को चित्रित करती है। |
अज्ञात |
|
#157 |
नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं
रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। |
रामकृष्ण परमहंस |
|
#158 |
जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है
उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। |
विनोबा |
|
#159 |
उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य
देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। |
चीनी कहावत |
|
#160 |
वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें
विश्वास है कि वे विजयी होंगे। |
अज्ञात |
|
#161 |
जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी
गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है
और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। |
दीनानाथ दिनेश |
|
#162 |
जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की
सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास
करती है। |
अथर्ववेद |
|
#163 |
उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब
विवेक के अधिक निकट होते हैं। |
अज्ञात |
|
#164 |
जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और
ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। |
सुभाषचंद्र बोस |
|
#165 |
विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी
मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। |
अज्ञात |
|
#166 |
आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है
पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। |
महात्मा गांधी |
|
#167 |
पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं
शीतल जल की धारा बहती है। |
जयशंकर प्रसाद |
|
#168 |
आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को
विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष
नहीं दिखता। |
चाणक्य |
|
#169 |
एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न
वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। |
अज्ञात |
|
#170 |
किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट
दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। |
अज्ञात |
|
#171 |
ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर
है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। |
विनोबा |
|
#172 |
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के
पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#173 |
कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और
सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। |
प्रेमचंद |
|
#174 |
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते
हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। |
अज्ञात |
|
#175 |
जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क
उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है। |
अज्ञात |
|
#176 |
अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न
करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं। |
जवाहरलाल नेहरू |
|
#177 |
सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने
पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। |
पं. मोतीलाल नेहरू |
|
#178 |
स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम
अपने आप कर लेता है। |
विनोबा |
|
#179 |
जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं
उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। |
मुक्ता |
|
#180 |
दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस
संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। |
डॉ. रामकुमार वर्मा |
|
#181 |
डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का
कर्तव्य होता है। |
अज्ञात |
|
#182 |
सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी
कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। |
अज्ञात |
|
#183 |
अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य
चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। |
अज्ञात |
|
#184 |
जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता
उसने सबकुछ जीता। |
अज्ञात |
|
#185 |
अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम
है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। |
कहावत |
|
#186 |
जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष
प्राप्त नहीं होते। |
वेदव्यास |
|
#187 |
नियम के बिना और अभिमान के साथ किया
गया तप व्यर्थ ही होता है। |
वेदव्यास |
|
#188 |
जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर
हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। |
अमृतलाल नागर |
|
#189 |
जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता
वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। |
स्वामी भजनानंद |
|
#190 |
लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो
ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। |
सरदार पटेल |
|
#191 |
एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है।
उसके भीतर रह कर कोई भी प्राणी असुरक्षा अनुभव नहीं करता। |
अज्ञात |
|
#192 |
फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो।
आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#193 |
सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को
डराता है। |
अज्ञात |
|
#194 |
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परंतु उससे लाभ
उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। |
हरिऔध |
|
#195 |
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में
शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। |
हरिऔध |
|
#196 |
जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह
शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। |
राम प्रताप त्रिपाठी |
|
#197 |
मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के
पीछे से वार करता है। |
प्रेमचंद |
|
#198 |
असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की
एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। |
हरिभाऊ उपाध्याय |
|
#199 |
समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे
केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#200 |
संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर
लगने वाला फल मीठा होता है। |
स्वामी शिवानंद |
|
#201 |
विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती
है दुनिया उस पर कल अमल करती है। |
विनोबा |
|
#202 |
विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण
के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। |
रवींद्र |
|
#203 |
हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर
विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। |
गौतम बुद्ध |
|
#204 |
जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में
नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। |
मोरारजी देसाई |
|
#205 |
मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने
लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को
बदल सकते हैं। |
महात्मा गांधी |
|
#206 |
सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है।
हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। |
महात्मा गांधी |
|
#207 |
दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते
हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। |
रामचंद्र शुक्ल |
|
#208 |
धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़
निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। |
विदुर |
|
#209 |
वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर
मौन दिव्य। |
कहावत |
|
#210 |
मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती
है अपने बेटे को साथ ले जाती है। |
सुदर्शन |
|
#211 |
मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का
प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। |
अज्ञात |
|
#212 |
जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को
आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#213 |
साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन
होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है। |
अज्ञात |
|
#214 |
ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव
से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। |
कौटिल्य |
|
#215 |
जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा
के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। |
सुदर्शन |
|
|
|
|
|
|
सप्ताह का विचार |
(पुरालेख) |
|
|
|
|
|
#216 |
जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें
जुट जाओ। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है।
साहस से काम शुरु करो पूरा अवश्य होगा। |
अज्ञात |
|
#217 |
मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं।
संसार की समस्त शक्तियाँ उनके सामने नतमस्तक हैं। |
अज्ञात |
|
#218 |
सबसे उत्तम विजय प्रेम की है। जो सदैव
के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। |
सम्राट अशोक |
|
#219 |
महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम
से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। |
प्रेमचंद |
|
#220 |
बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य
नहीं हुआ। |
सुभाष चंद्र बोस |
|
#221 |
नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह
बुरा है। मगर सामने मुस्काना और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। |
संत तिरुवल्लुवर |
|
#222 |
अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ
झूठ पहुँच जाता है वहाँ अधर्म-राज्य की विजय-दुंदुभी अवश्य बजती है। |
सुदर्शन |
|
#223 |
पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित
लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। |
कालिदास |
|
#224 |
जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण
ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। |
डॉ. रघुवंश |
|
#225 |
ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब
उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। |
रवींद्रनाथ ठाकुर |
|
#226 |
सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव
के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। |
अशोक |
|
#227 |
जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं-
एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं
पर सोचते नहीं। |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
|
#228 |
कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये
तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। |
अरविंद |
|
#229 |
उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य
प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। |
रहीम |
|
#230 |
विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है।
यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए
आभूषण है। |
|
|
#231 |
मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और
समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। |
माघ |
|
#232 |
सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो
उम्मीद पर टिकी होती हैं। |
रविकिरण शास्त्री |
|
#233 |
अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक
बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। |
राजेंद्र अवस्थी |
|
#234 |
विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक
संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। |
हर्ष मोहन |
|
#235 |
पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है
विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। |
जयशंकर प्रसाद |
|
#236 |
जो मनुष्य एक पाठशाला खोलता है वह एक
जेलखाना बंद करता है। |
अज्ञात |
|
#237 |
यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से
होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। |
कालिदास |
|
#238 |
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं
होती। |
हरिवंश राय बच्चन |
|
#239 |
जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है। |
कहावत |
|
#240 |
मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास
है। |
भगवतीचरण वर्मा |
|
#241 |
उदय होते समय सूर्य लाल होता है और
अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में
एकरूपता होती है। |
कालिदास |
|
#242 |
वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर
अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। |
तुलसीदास |
|
#243 |
प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है
उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। |
वृंद |
|
#244 |
चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक
नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ। |
प्रेमचंद |
|
#245 |
दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर
है। |
महात्मा गांधी |
|
#246 |
संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को
भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
|
#247 |
मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना
चमत्कार है। |
डॉ. राधाकृष्णन |
|
#248 |
केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम
करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं। |
विनोबा |
|
#249 |
अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं
किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? |
संतोष गोयल |
|
#250 |
विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है
पर यदि उसकी रक्षा पौरुष के साथ न की जाय तो अपमान का ज़हर पिला कर चली जाती है। |
मुक्ता |
|
#251 |
धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका
पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। |
भर्तृहरि |
|
#252 |
केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी
मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है। |
स्वामी रामतीर्थ |
|
#253 |
कलियुग में रहना है या सतयुग में यह
तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। |
विनोबा |
|
#254 |
प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा
को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। |
चाणक्य |
|
#255 |
भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु
होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती
है। |
कहावत |
|
#256 |
बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग
लो, उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। |
सत्यसाई बाबा |
|
#257 |
धन तो वापस किया जा सकता है परंतु
सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। |
सुदर्शन |
|
#258 |
शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार
अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। |
रामनरेश त्रिपाठी |
|
#259 |
श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ
हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता
है। |
अमृतलाल नागर |
|
#260 |
जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख
के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र
भी निश्चित है। |
भावना कुँअर |
|
#261 |
धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे
स्वयं उड़ते हैं और कभी-कभी अधिक धन लाने के लिए उन्हें उड़ाना पड़ता है। |
कहावत |
|
#262 |
प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि
मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है। |
अज्ञात |
|
#263 |
प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही
प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। |
राजगोपालाचारी |
|
#264 |
अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के
साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। |
कमलेश्वर |
|
#265 |
मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा
जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह
खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। |
हरिशंकर परसाई |
|
#266 |
'शि' का अर्थ है पापों का
नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे
शिव कहलाते हैं। |
ब्रह्मवैवर्त पुराण |
|
#267 |
काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो
परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। |
कालिदास |
|
#268 |
रंगों की उमंग खुशी तभी देती है जब
उसमें उज्जवल विचारों की अबरक़ चमचमा रही हो। |
मुक्ता |
|
#269 |
नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास
है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। |
जयशंकर प्रसाद |
|
#270 |
चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और
चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। |
वशिष्ठ |
|
#271 |
इस संसार में प्यार करने लायक दो
वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम
के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। |
आचार्य श्रीराम शर्मा |
|
#272 |
बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
|
#273 |
संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता
है। |
कुमार आशीष |
|
#274 |
शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे
ज़्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नहीं देते। |
अज्ञात |
|
#275 |
अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना
मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। |
मधूलिका गुप्ता |
|
#276 |
जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और
मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम
न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न
उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। |
प्रेमचंद |
|
#277 |
आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने
घर की याद आती है। |
प्रेमचंद |
|
#278 |
किताबें समय के महासागर में जलदीप की
तरह रास्ता दिखाती हैं। |
अज्ञात |
|
#279 |
देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से
बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। |
शिव खेड़ा |
|
#280 |
बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो
चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का
चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति
की अपनी कमाई है। |
अष्टावक्र |
|
#281 |
यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही
डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े
रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। |
वल्लभ भाई पटेल |
|
#282 |
ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे कद
का अंदाज जो आसमान था पर सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी
मुसकुरा के रहता था। |
मधूलिका गुप्ता |
|
#283 |
बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों
से होकर जाता है। |
शिल्पायन |
|
#284 |
दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो
सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते। |
मधूलिका गुप्ता |
|
#285 |
राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा
सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। |
सुब्रह्मण्यम भारती |
|
#286 |
मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह
विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। |
सत्य साईं बाबा |
|
#287 |
बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना
निर्माण का। |
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर |
|
#288 |
समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत
नहीं। |
मधूलिका गुप्ता |
|
#289 |
सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के
लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं। |
कालिदास |
|
#290 |
सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर
सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है। |
मुक्ता |
|
#291 |
दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि
है- मन से दुखों की चिंता न करना। |
वेदव्यास |
|
#292 |
बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है
और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। |
अज्ञात |
|
#293 |
पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं
होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। |
महात्मा गांधी |
|
#294 |
अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में
सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम
विदेशी भाषा नहीं है।" |
महामना मदनमोहन मालवीय |
|
#295 |
हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके
छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं। |
अज्ञात |
|
#296 |
मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने
लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को
बदल सकते हैं। |
महात्मा गांधी |
|
#297 |
रामायण समस्त मनुष्य जाति को
अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। |
मदनमोहन मालवीय |
|
#298 |
उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी
भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और
निडरता भरता है। |
डॉ. प्रेम जनमेजय |
|
#299 |
वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक
से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो। |
चाणक्य |
|
#300 |
हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में
पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो
क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? |
शास्त्री फ़िलिप |
|
#301 |
यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है।
जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन
के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है। |
रामनरेश त्रिपाठी |
|
#302 |
अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे
ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। |
कमलापति त्रिपाठी |
|
#303 |
समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी
कम कर देते हैं। |
कहावत |
|
#304 |
स्वयं प्रकाशित दीप भी प्रकाश के लिए
तेल और बत्ती का जतन करता है, विकास के लिए निरंतर
यत्न ही बुद्धिमान पुरुष के लक्षण है। |
|

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