Kabir ke Shabdजाग री-२ जाग री, मेरी सूरत सुहागण जाग री।।क्या तूँ सोवै मोह नींद में।ऊठ भजन में लाग री।।अनहद शब्द सुनो चित्त लाकै।ऊठत मधुर धुन राग री।।चरण शीश धर विनती करियो।पावेगी अटल सुहाग री।।कह कबीर सुनो म्हारी सुरतां।जगत पीठ दे भाग री।।
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