वट सावित्री व्रत की कहानी
भद्र देश में अश्वपति नाम -का राजा राज्य करता था, जिस के संतान नहीं थी। उसने बड़े-बड़े पण्डितों को' बुलाया और कहा, ''मेरे संतान नहीं हे। इसलिये तुम कुछ ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरे यहां संतान उत्पन्न हो जाये। पण्डित बोले, “कि हे राजन! आपकी कुंडली में एक पुत्री योग है जो कि 12 वर्ष की आयु में विधवा हो जायेगी।'' राजा ने कहा-'' क्या मेरा नाम नहीं रहेगा?” बाद में खूब यज्ञ-हवन इत्यादि कराये।पण्डितों ने कहा-''उस लड़की से पार्वती की और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना। यज्ञ-होम कराने से उसकी स्त्री गर्भवती हो गई तो पण्डितों ने उसकी जन्मपत्री देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की होगी उस दिन इसका विधवा हो जाने का योग है। इसलिये इससे पार्वती जी और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना। जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया गया।
सावित्री के सास-ससुर अन्धे थे। वह उनकी बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था। सावित्री को मालूम था कि वह जिस दिन 12 वर्ष की होगी उस दिन उमके पति की मृत्यु निश्चित है। जिस दिन वह 12 वर्ष की हुई, उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली-''आज मैं भी आपके साथ चलूंगी।”'
सत्यवान बोला-'यदि तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अन्थे माँ बाप की कौन सेवा करेगा? अगर वह कहेंगे तो तुझे ले चलूंगा।''फिर वह अपने सास-ससुर के पास गई ओर जाकर बोली, ''यर्दि आप कहें तो आज में जंगल देखने चली जाऊँ।'' उसके सास ससुर बोले-''बहुत अच्छी बात है बहू जा चली जा।”
जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी काटने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया। उस पेड़ में साँप रहा करता था। उमने सत्यवान को डस लिया। वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी। महादेव ओर पार्ववीजी वहीं से होकर निकल रहे थे। उनकी नजर सावित्री पर पडी तो उन्होंने सावित्री से प्रश्न किया कि क्या बात है पुत्री रो क्यों रही हो? सावित्री ने रोते हुए उनके पैर पकड़ लिये-“ और बोली! कि हे भगवन् आप मेरे पति को जीवित कर दो।”
वे बोले कि आज बड़ सायत अमावस है तू उसकी पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा। फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगो। बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वह गहने हीरे और मोती के बन गये। इतने में धर्मगाज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा।
सत्यवान बोला-'यदि तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अन्थे माँ बाप की कौन सेवा करेगा? अगर वह कहेंगे तो तुझे ले चलूंगा।''फिर वह अपने सास-ससुर के पास गई ओर जाकर बोली, ''यर्दि आप कहें तो आज में जंगल देखने चली जाऊँ।'' उसके सास ससुर बोले-''बहुत अच्छी बात है बहू जा चली जा।”
जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ी काटने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया। उस पेड़ में साँप रहा करता था। उमने सत्यवान को डस लिया। वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी। महादेव ओर पार्ववीजी वहीं से होकर निकल रहे थे। उनकी नजर सावित्री पर पडी तो उन्होंने सावित्री से प्रश्न किया कि क्या बात है पुत्री रो क्यों रही हो? सावित्री ने रोते हुए उनके पैर पकड़ लिये-“ और बोली! कि हे भगवन् आप मेरे पति को जीवित कर दो।”
वे बोले कि आज बड़ सायत अमावस है तू उसकी पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा। फिर वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगो। बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वह गहने हीरे और मोती के बन गये। इतने में धर्मगाज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा।
सावित्री ने उसके पैर पकड़ लिये। धर्मराज बोला कि तू वरदान मांग। सावित्री ने कहा कि मेरे माँ-बाप के पुत्र नहीं है, वे पुत्रवान हो जायें। धर्मराज बोला कि सत्यवचन, हो जायेगा। फिर वे बोली-'मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उनके नेत्रों में प्रकाश भर दो।'” धर्मराज ने कहा तथास्तु। पर सावित्री ने धर्मराज का पीछा नहीं छोड़ा। धर्मराज ने कहा-''अब तुझे और कया चाहिए?” “मुझे 100 पुत्र हो जायें।" धर्मराज बोला, “तथास्तु।' फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे।
तब सावित्री बोली कि हे महाराज! आप मेरे पति को ले जायेंगे तो पुत्र कहां से होंगे? धर्मराज ने कहा-हे सती! तेरा सुहाग तो नहीं था, परन्तु बड़ सायत अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा और सारे में ढिंढोग पिटवा दिया कि कहते-सुनते जेठ की अमावस्या आएगी जब बड़ के वृक्ष की पूजा करना ओर बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहनना। बायना निकालना।
हे महाराज! जैसे बड़ सायत अमावस ने सावित्री को सुहाग दिया उसी प्रकार सबको देना। जो भी इस कहानी को सुने-सुनाये उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करना। बड़ सायत अमावस को बट सावित्री ब्रत और वट अमावस भी कहते हैं।
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